THE NARAD NEWS24………………………………राजधानी में सफाई सिस्टम मजबूत करने इंदौर की तर्ज पर सफाई कर्मचारियों के खातों में रकम ट्रांसफर की जा रही थी। लेकिन किसी भी महीने सफाई कर्मचारियों को समय पर सैलरी नहीं मिली। इस वजह से जिन दो वार्डों में बैजनाथपारा और रविशंकर में यह सिस्टम लागू किया गया था, अब वहां भी बंद किया जा रहा है। इसके साथ ही यह भी तय कर लिया गया है कि किसी भी वार्ड में सफाई कर्मचारियों के खातों में रकम ट्रांसफर नहीं की जाएगी। ठेकेदारों के माध्यम से ही सफाई कर्मियों को वेतन भुगतान किया जाएगा।
सफाई के मामले में देशभर में पहले स्थान पर आए इंदौर की व्यवस्था देखने के लिए महापौर कई पार्षदों और अफसरों के साथ वहां टूर पर गए। इंदौर से लौटने के बाद मेयर ने खुद के और एमआईसी सदस्य आकाश तिवारी के वार्ड में यह सिस्टम लागू किया कि सफाई कर्मचारियों की सैलरी उनके खातों में दी जाएगी। दोनों वार्डों में योजना सफल होती तो इसे बाकी के 68 वार्डों में लागू किया जाता। लेकिन दोनों वार्ड में यह योजना बुरी तरह से फेल हो गई। इतना ही नहीं इस सिस्टम का कांग्रेसी पार्षदों ने भी विरोध शुरू कर दिया था। इस वजह से आखिर में तय किया गया कि यह योजना किसी भी वार्ड में लागू नहीं की जाएगी। जिन दो वार्डों में यह सिस्टम चल रहा है उसे भी बंद कर दिया जाएगा।
सफाई को लेकर दशक से कोई नई योजना नहीं
राजधानी में सफाई सिस्टम बेहतर करने के लिए पिछले एक दशक में कोई भी नई योजना तैयार नहीं की गई। पिछले कई साल ठेकेदारों को ही सफाई का ठेका दिया जा रहा है। इसमें जमकर फर्जीवाड़ा होता है। दावा किया जा रहा है कि पार्षद, ठेकेदार और निगम अफसर सभी इस फर्जीवाड़े में शामिल रहते हैं। इसलिए जिस भी ठेकेदार को यह ठेका मिलता है बिना किसी परेशानी के वो सालभर काम करता है। सफाई का ठेका भी पार्षदों की पसंद से ही दिया जाता है। टेंडर फॉर्म उन्हें ही इश्यू किया जाता है जिनके नाम पार्षद देते हैं। इस वजह से भी शहर में सफाई का सिस्टम मजबूत नहीं हो पाया है।
करीब 3300 कर्मचारी 4.25 करोड़ का भुगतान
शहर की सफाई के लिए करीब 3300 कर्मचारी फील्ड में काम करते हैं। इनके लिए निगम हर महीने ठेकेदारों को 4.25 करोड़ का भुगतान करता है। वार्डों की आबादी और एरिया के अनुसार सफाई कर्मचारियों की संख्या तय की जाती है। इन सफाई कर्मचारियों के अलावा हर जोन में एक सफाई गैंग भी होता है। जो जोन कमिश्नर के निर्देश पर वार्डों में जाकर सफाई करता है। बताया जा रहा है कि यह निगम के परमानेंट सफाई कर्मचारी है। इनको हर महीने निगम से सैलरी मिलती है। यह स्टाफ भी बड़ा है। इसके बावजूद शहर में सफाई सिस्टम बेहतर नहीं हो पाया है।
सफाई कर्मचारियों के खातों में रकम ट्रांसफर करने की योजना बंद की जा रही है। दो वार्डों में इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया था। लेकिन सिस्टम कारगर नहीं होने की वजह से अब इसे किसी भी वार्ड में लागू नहीं किया जाएगा।