पृथ्वी के इलेक्ट्रॉन चांद पर पानी बना रहे:वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-1 के डेटा स्टडी करके दावा किया; चंद्रयान-3 का लक्ष्य भी पानी खोजना
THE NARAD NEWS24…………………………चंद्रयान-1 के डेटा की स्टडी कर रहे अमेरिका की हवाई यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट्स ने दावा किया है कि पृथ्वी के हाई एनर्जी इलेक्ट्रॉन चांद पर पानी बना रहे हैं। ये इलेक्ट्रॉन पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में हैं, जो मौसमी प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार है, यानी इनके होने से ही पृथ्वी के मौसम में बदलाव होता है।
साइंटिस्ट्स का दावा है कि ये इलेक्ट्रॉन चांद पर मौजूद चट्टानों और खनिजों को तोड़ या घोल रहे हैं। इससे चांद के मौसम में भी बदलाव आ रहा है। ‘नेचर एस्ट्रोनॉमी’ जर्नल में पब्लिश स्टडी में कहा गया कि इन इलेक्ट्रॉन्स ने चांद पर पानी बनाने में मदद की होगी।
इसके पहले 2008 में लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था। उस मिशन की एक रिसर्च के आधार पर चांद पर बर्फ होने का दावा किया गया था। इसके बाद साइंटिस्ट्स ने अनुमान लगाया कि चांद के पोलर रीजन में सूरज की रोशनी नहीं पहुंचने से वहां का तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे हो सकता है, जो बर्फ के फॉर्म में पानी की मौजूदगी की ओर इशारा करता है। इसलिए पानी की खोज के लिए 14 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 लॉन्च किया गया।
चांद पर पानी कैसे बन रहा
स्टडी के मुताबिक, प्रोटॉन जैसे हाई एनर्जी पार्टिकल्स से बनी सोलर विंड चंद्रमा की सतह पर बिखर जाती है, इस वजह से चंद्रमा पर पानी बन जाता है।
साइंटिस्ट्स ने चंद्रमा के पृथ्वी के मैग्नेटोटेल से गुजरने के दौरान वहां के मौसम में होने वाले बदलावों का अध्ययन किया। मैग्नेटोटेल पृथ्वी का ऐसा एरिया है, जहां सोलर विंड बिल्कुल नहीं पहुंचती, लेकिन सूरज की रोशनी पहुंचती है।
साइंटिस्ट शुआई ली ने कहा- जब चांद मैग्नेटोटेल के बाहर होता है तो इसकी सतह पर सोलर विंड की बौछार होती है। वहीं, जब चांद मैग्नेटोटेल के अंदर होता है तो सतह पर सोलर विंड नहीं पहुंचती, इस वजह से पानी बनने की संभावना होती है। स्टडी में यह भी कहा गया कि पृथ्वी के मैग्नेटोटेल में इलेक्ट्रॉन्स वाली प्लाज्मा शीट होती है।
आसान शब्दों में समझें- चांद पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक उजाला रहता है। यानी 14 दिन ही यहां पर सूरज की रोशनी होती है। जब यहां सूरज की रोशनी नहीं होती तो सोलर विंड की बौछार होती है। इसी दौरान पानी बनने का दावा किया गया है।
2008 में लॉन्च हुआ था चंद्रयान-1 मिशन
इसरो ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 का सफल लॉन्च किया था। ऐसा करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बना था। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किए गए चंद्रयान-1 में भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में बने 11 साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट्स लगे थे।
वैसे तो यह मिशन दो साल का था, लेकिन जब इसने अपने उद्देश्य पूरे कर लिए तो चांद के गुरुत्वाकर्षण बल से जुड़ा डेटा जुटाने के लिए सतह से इसकी ऊंचाई 100 किमी से बढ़ाकर 200 किमी की गई थी। इसी दौरान 29 अगस्त 2009 को इससे रेडियो संपर्क टूट गया। तब तक इसने चांद की रासायनिक, मिनरलॉजिक और फोटो-जियोलॉजिकल मैपिंग कर ली थी।
चंद्रयान-1 ने चांद की 70 तस्वीरें भेजी थीं
चंद्रयान-1 ने आठ महीने में चांद के 3,000 चक्कर लगाए और 70 हजार से ज्यादा तस्वीरें भेजीं। इनमें चांद पर बने पहाड़ों और क्रेटर को भी दिखाया गया था। चांद के ध्रुवीय क्षेत्रों में अंधेरे इलाके के फोटो भी इसने भेजे। इस मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी चांद पर पानी के होने की पुष्टि। ISRO ने अपने डेटा को एनालाइज कर इसकी घोषणा की और दो दिन बाद NASA ने भी इसकी पुष्टि की।
चंद्रयान-1 को चंद्रमा तक पहुंचने में 5 दिन लगे थे
इसे चंद्रमा तक पहुंचने में 5 दिन और उसका चक्कर लगाने के लिए कक्षा में स्थापित होने में 15 दिन लग गए थे। इसरो (ISRO) ने अपना स्पेस प्रोग्राम शुरू करने के 45 साल बाद मिशन मून फतह किया था। इसी चंद्रयान में एक डिवाइस लगा था- मून इम्पैक्ट प्रोब यानी MIP, जिसने 14 नवंबर 2008 को चांद की सतह पर उतरकर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत का दबदबा बढ़ाया।
इसी डिवाइस ने चांद की सतह पर पानी की खोज की। यह इतनी बड़ी खोज थी कि अमेरिकी स्पेस साइंस ऑर्गेनाइजेशन नासा ने भी पहले ही प्रयास में यह खोज करने के लिए भारत की पीठ थपथपाई थी। MIP की कल्पना पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने की थी। उनके सुझाव पर ही इसरो के वैज्ञानिकों ने MIP बनाया था।
कलाम चाहते थे कि भारतीय वैज्ञानिक चांद के एक हिस्से पर अपना निशान छोड़ें और इसरो के भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्हें निराश नहीं किया।